// शिववास //
नियम ->
वर्तमान तिथि को द्विगुणित करके 5 को जोड़कर 7 से
भाग देने पर शिववास प्राप्त होता है |
उदहारण -> (1.)
वर्तमानतिथि -> सप्तमी ( 7 ) [शुक्लपक्ष]
7 X 2 = 14 -> द्विगुणित
14 + 5 = 19 -> नियमानुसार
7 ) 19 ( 2 -> नियमानुसार
14
5
- इस समय भगवान भोलेनाथ भोजन पर है और अभिषेक करने
पर पीड़ा देंगे |
कृपया ध्यान दें- शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक तिथियों की कुल
संख्या 30 होती है | यदि कृष्णपक्ष कि कोई तिथि लेते है तो
उसमे 15 जोड़कर गणित करेंगे |
(2.) वर्तमानतिथि -> चतुर्थी ( 4 ) [कृष्णपक्ष]
15 + 4 = 19 x 2 = 38 + 5 = 43
7)43(6
42
1
- इस समय भगवान भोलेनाथ कैलाश पर है और अभिषेक करने
पर सुख की प्राप्ति होगी |
// फलसारणी //
0. श्मशान => मृत्यु
1. कैलास => सुखप्राप्ति
2. गौरी के पास => सुख संपत्ति ( धन )
3. बैल के पास => मनोकामना पूर्ण
4. सभा => कष्ट ( संत्ताप )
5. भोजन पर => पीड़ा
6. क्रीडा में => कष्ट
शुक्ल पक्ष में २,५,६,९,१२,१३और कृष्ण पक्ष में १,४,५,८,११,१२,३० ||
कृपया ध्यान दें-
शिव-वास का विचार सकाम (इच्छा युक्त) अनुष्ठान में ही किया जाता है | निष्काम(इच्छा रहित) भाव से की जाने वाली अर्चना कभी भी की जा सकती है | ज्योतिर्लिंग-क्षेत्र एवं तीर्थस्थान में तथा शिवरात्रि-प्रदोष, सावन के सोमवार आदि पर्वों में शिववास का विचार किए बिना भी रुद्राभिषेक,अनुष्ठान आदि किया जा सकता है |
कृष्णपक्ष की सप्तमी, चतुर्दशी तथा शुक्लपक्ष की प्रतिपदा, अष्टमी, पूर्णिमा में भगवान महाकाल श्मशान में समाधिस्थ रहते हैं। अतएव इन तिथियों में किसी कामना की पूर्ति के लिए किए जाने वाले रुद्राभिषेक में आवाहन करने पर उनकी साधना भंग होती है जिससे अभिषेककर्ता पर विपत्ति आ सकती है।
कृष्णपक्ष की द्वितीया, नवमी तथा शुक्लपक्ष की तृतीया व दशमी में महादेव देवताओं की सभा में उनकी समस्याएं सुनते हैं। इन तिथियों में सकाम अनुष्ठान करने पर संताप या दुख मिलता है।
कृष्णपक्ष की तृतीया, दशमी तथा शुक्लपक्ष की चतुर्थी व एकादशी में सदाशिव क्रीडारत रहते हैं। इन तिथियों में सकाम रुद्रार्चन संतान को कष्ट प्रदान करते है।
कृष्णपक्ष की षष्ठी, त्रयोदशी तथा शुक्लपक्ष की सप्तमी व चतुर्दशी में रुद्रदेव भोजन करते हैं। इन तिथियों में सांसारिक कामना से किया गया रुद्राभिषेक पीडा देते हैं।
शिव वास ज्ञान : वर्तमान तिथि को २ से गुणा करके पांच जोड़ें फिर ७ का भाग दें . शेष १ रहे तो शिव वास कैलाश में, २ से गौरी पाशर्व में, ३ से वृषारूड़ श्रेष्ठ, ४ से सभा में सामान्य एवं ५ से ज्ञानबेला में श्रेष्ठ होता है. यदि शेष ६ रहे तो क्रीड़ा में तथा शून्य से शमशान में अशुभ होता है. तिथि की गणना शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से करनी चाहिए. शिवार्चन के लिए शुभ तिथियाँ शुक्ल पक्ष में २,५,६,७,९,१२,१३,१४और कृष्ण पक्ष में १,४,५,६,८,११,१२,१३,३०
शिव वास देखने का सूत्र
शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक तिथियों की कुल संख्या 30 होती है । इस तरह से कोई भी मुहूर्त देखने के लिए 1 से 30 तक की संख्या को ही लेना चाहिए ।।
तिथी च द्विगुणी कृत्वा तामे पञ्च समाजयेत ।।
सप्तभि (मुनिभिः) हरेद्भागं शेषे शिव वाससं ।।
एक शेषे तू कैलाशे, द्वितीये गौरी संनिधौ ।।
तृतीये वृष भारुढौ सभायां च चतुर्थके ।।
पंचमे तू क्रीडायां भोजने च षष्टकं ।।
सप्तमे श्मशाने च शिववास: प्रकीर्तितः ।।
तिथि शुक्ल पक्ष | शिववास | फल | तिथि कृष्ण पक्ष | शिववास | फल |
1 | शमशान | मृत्युतुल्य | 1 | गौरी सानिध्य | सुखप्रद |
2 | गौरी सानिध्य | सुखप्रद | 2 | सभायां | संताप |
3 | सभायां | संताप | 3 | क्रीडायां | कष्ट एवं दुःख |
4 | क्रीडायां | कष्ट एवं दुःख | 4 | कैलाश पर | सुखप्रद |
5 | कैलाश पर | सुखप्रद | 5 | वृषारूढ | अभीष्टसिद्धि |
6 | वृषारूढ | अभीष्टसिद्धि | 6 | भोजन | पीड़ा |
7 | भोजन | पीड़ा | 7 | शमशान | मृत्युतुल्य |
8 | शमशान | मृत्युतुल्य | 8 | गौरी सानिध्य | सुखप्रद |
9 | गौरी सानिध्य | सुखप्रद | 9 | सभायां | संताप |
10 | सभायां | संताप | 10 | क्रीडायां | कष्ट एवं दुःख |
11 | क्रीडायां | कष्ट एवं दुःख | 11 | कैलाश पर | सुखप्रद |
12 | कैलाश पर | सुखप्रद | 12 | वृषारूढ | अभीष्टसिद्धि |
13 | वृषारूढ | अभीष्टसिद्धि | 13 | भोजन | पीड़ा |
14 | भोजन | पीड़ा | 14 | शमशान | मृत्युतुल्य |
15 | शमशान | मृत्युतुल्य | 15/30 | गौरी सानिध्य | सुखप्रद |
